Sunday, 20 September 2015

विरह



मुसाफिर हैं हम तो
हमारे मिलने की खुशी क्या
और क्या ही जाने का गम

प्रेम तो बंधन विमुक्त होता है
और दूरियाँ भी ज़रूरी होती है
हमें पास होने का अहसास दिलाती है

जाने पर आँसू ना बहाया करो
दिल तो मेरा भी भर आता है
जाना थोड़ा मुस्किल हो जाता है

दिल की नज़र से देखो
साथ ही तो हूँ हर पल
और साथ लिए हूँ हमारा प्यार हर पल

Monday, 20 April 2015

दंभ

अभी अभी तो गिरा था तू
कितनी मुस्किल से संभला था तू
ना जाने फिर फस गया कैसे
इस दंभ के जाल मे तू
ये संसार तो मायावी है
और है इसके चाल अनेक
पर मन का दर्पण सब दिखलाता है
भंवर मे फसे नाव का केवट बन जाता है
नज़रों को इस दर्पण से कभी ओझल मत करना
हवा का रुख़ बदलते देर नही लगती