अभी अभी तो गिरा था तू
इस दंभ के जाल मे तू
ये संसार तो मायावी है
और है इसके चाल अनेक
पर मन का दर्पण सब दिखलाता है
भंवर मे फसे नाव का केवट बन जाता है
नज़रों को इस दर्पण से कभी ओझल मत करना
हवा का रुख़ बदलते देर नही लगती
कितनी मुस्किल से संभला था तू
ना जाने फिर फस गया कैसेइस दंभ के जाल मे तू
ये संसार तो मायावी है
और है इसके चाल अनेक
पर मन का दर्पण सब दिखलाता है
भंवर मे फसे नाव का केवट बन जाता है
नज़रों को इस दर्पण से कभी ओझल मत करना
हवा का रुख़ बदलते देर नही लगती